यूनेस्को की ओर से मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा 17 नवंबर 1999 को की गई थी और पहली बार वर्ष 2000 में इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया था।इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।
यूनेस्को द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस (बांग्ला: ভাষা আন্দোলন দিবস / भाषा आन्दोलोन दिबॉश) को अन्तरराष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है।
2008 को अन्तरराष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर दोहराया है।
संबंधित डेटा:
- संयुक्त राष्ट्र (United Nation) के अनुसार, हर दो हफ्ते में एक भाषा गायब हो जाती है और दुनिया एक पूरी सांस्कृतिक तथा बौद्धिक विरासत खो देती है।
- वैश्वीकरण के दौर में बेहतर रोज़गार के अवसरों के लिये विदेशी भाषा सीखने की होड़ मातृभाषाओं के लुप्त होने के पीछे एक प्रमुख कारण है।
- दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से लगभग 43% भाषाएँ लुप्तप्राय हैं।
- वास्तव में केवल कुछ सौ भाषाओं को ही शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक क्षेत्र में जगह दी गई है। वैश्विक आबादी के लगभग 40% लोगों ने ऐसी भाषा में शिक्षा प्राप्त नहीं की है, जिसे वे बोलते या समझते हैं।
- सिर्फ सौ से कम भाषाओं का उपयोग डिजिटल जगत में किया जाता है।
भाषाओं के संरक्षण के लिये वैश्विक प्रयास:
- संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 और वर्ष 2032 के बीच की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक (International Decade of Indigenous Languages) के रूप में नामित किया है।
- इसके पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (International Year of Indigenous Languages) के रूप में घोषित किया था।
- यूनेस्को द्वारा वर्ष 2018 में चांग्शा (Changsha- चीन) में की गई युलु उद्घोषणा (Yuelu Proclamation) भाषायी संसाधनों और विविधता की रक्षा करने के लिये विश्व के देशों तथा क्षेत्रों के प्रयासों के मार्गदर्शन में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है।
भारत द्वारा की गई पहल:
- हाल ही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy), 2020 में मातृभाषाओं के विकास पर अधिकतम ध्यान दिया गया है।
- इस नीति में सुझाव दिया गया है कि जहाँ तक संभव हो शिक्षा का माध्यम कम-से-कम कक्षा 5 तक (अधिमानतः 8वीं कक्षा तक और उससे आगे) मातृभाषा/भाषा/क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिये।
- मातृभाषा में शिक्षा दिये जाने से यह छात्रों को उनकी पसंद के विषय और भाषा को सशक्त बनाने में मदद करेगा। यह भारत में बहुभाषी समाज के निर्माण, नई भाषाओं को सीखने की क्षमता आदि में भी मदद करेगा।
- विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन के लिये वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology) द्वारा अनुदान प्रदान किया जा रहा है।
- इस आयोग को सभी भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली विकसित करने के लिये वर्ष 1961 में स्थापित किया गया था।
- राष्ट्रीय अनुवाद मिशन ( National Translation Mission- NTM) को मैसूर स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages- CIIL) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में निर्धारित विभिन्न विषयों की ज़्यादातर पाठ्य पुस्तकों का भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है।
- लुप्त हो रही भाषाओं के संरक्षण के लिये "लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण" (Protection and Preservation of Endangered Languages) योजना।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2022 की थीम:
बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर” (“Using technology for multilingual learning: Challenges and opportunities”), बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने और सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और सीखने के विकास का समर्थन करने के लिए प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर चर्चा करेगा।